मैं स्टेशन पर ट्रेन का इंतज़ार कर रही थी | पास ही बेंच पर बैठी एक युवती पर्दे की आड़ से मझे देख रही थी , नज़रें मिलने पर मैंने पुछा " क्या आप भी मुंबई जा रही हैं " जवाब में उसने सर हिलाया | मुझे बात करता देख युवती के साथ खड़ा व्यक्ति दूर चला गया |
युवती ने पर्दा हटा दिया और बोली " नमस्ते मैडम क्या आपने मुझे पहचाना ? "
मैं उसे एक नज़र में पहचान गई , और पहचानती कैसे नहीं स्कूल की सबसे तेज़ लड़की थी वह , हर competition में सबसे आगे | लेकिन उसको इस घूंघट में देख मैं हैरान थी |
उसने बताया की उसके ससुर उसे छोड़ने आये हैं इसलिए वो घूंघट में है
ट्रेन आ चुकी थी | इत्तेफ़ाक़ से उसकी और मेरी सीट भी साथ ही थी |
उसके साथ आया व्यक्ति उसे सीट पर बैठा जा चुका था |
ट्रेन चल पड़ी और वो लड़की खड़ी हुई घूंघट हटाया और टॉयलेट की तरफ चल पड़ी , कुछ देर बाद वो लड़की वापस आई , हाथ में साड़ी लिए जीन्स और टी -शर्ट पहने | वह साड़ी बैग में रखने लगी |
उसका ये रूप देख मैं दंग रह गई | मुझे हैरान देख उसने कहा " ससुराल में पर्दा प्रथा है इसलिए जीन्स टी -शर्ट पहन कर ऊपर से साड़ी लपेट ली , अब मुंबई में पति और मैं दोनों नौकरी करते हैं इसलिए पर्दा हटा दिया "
मैं पूरे रास्ते ये ही सोचती रही की क्या उसने जो किया वो सही है ?
नया दौर और रूढ़िवादी सोच दोनों के साथ तालमेल बैठा कर चलने के उसके इस अंदाज से मैं प्रभावित हुए बिना न रह सकी
पर वहीँ एक विचार मन में यह भी आया की क्या उस लड़की को सामाजिक दकियानूसी , पर्दा रुपी बेड़ियों को सिरे से तोड़कर अपने व्यक्तित्व की अलग और असल पहचान नहीं बनानी चाहिए थी ?
मैं नई और पुरानी दोनों पीढ़ियों से प्रश्न करना चाहूंगी की क्या उस लड़की ने अपने आप को धोखा दिया ?
उसने बताया की उसके ससुर उसे छोड़ने आये हैं इसलिए वो घूंघट में है
ट्रेन आ चुकी थी | इत्तेफ़ाक़ से उसकी और मेरी सीट भी साथ ही थी |
उसके साथ आया व्यक्ति उसे सीट पर बैठा जा चुका था |
ट्रेन चल पड़ी और वो लड़की खड़ी हुई घूंघट हटाया और टॉयलेट की तरफ चल पड़ी , कुछ देर बाद वो लड़की वापस आई , हाथ में साड़ी लिए जीन्स और टी -शर्ट पहने | वह साड़ी बैग में रखने लगी |
उसका ये रूप देख मैं दंग रह गई | मुझे हैरान देख उसने कहा " ससुराल में पर्दा प्रथा है इसलिए जीन्स टी -शर्ट पहन कर ऊपर से साड़ी लपेट ली , अब मुंबई में पति और मैं दोनों नौकरी करते हैं इसलिए पर्दा हटा दिया "
मैं पूरे रास्ते ये ही सोचती रही की क्या उसने जो किया वो सही है ?
नया दौर और रूढ़िवादी सोच दोनों के साथ तालमेल बैठा कर चलने के उसके इस अंदाज से मैं प्रभावित हुए बिना न रह सकी
पर वहीँ एक विचार मन में यह भी आया की क्या उस लड़की को सामाजिक दकियानूसी , पर्दा रुपी बेड़ियों को सिरे से तोड़कर अपने व्यक्तित्व की अलग और असल पहचान नहीं बनानी चाहिए थी ?
मैं नई और पुरानी दोनों पीढ़ियों से प्रश्न करना चाहूंगी की क्या उस लड़की ने अपने आप को धोखा दिया ?
उस लड़की को सामाजिक दकियानूसी ,पर्दा रुपी बेड़ियों को सिरे से तोड़कर अपने व्यक्तित्व की अलग और असल पहचान बनानी चाहिये
ReplyDeleteमेरे विचार से लड़की ने सही किया है। परिवार और उसके गॉव की सभ्यता और संस्कृति को सम्मान देते गए वह के परिवेश ने रही औए शेर में वहां के ओरिवेश के अनुसार। लड़की का ससुराल दकियानूसी नही कह सकते क्योंकि उन्होंने बहु के नौकरी करने व शहर में पति के साथ रहने का भी विरोध नही किया, बल्कि ससुर खुद उसे ट्रैन तक छोड़ने गया है।
ReplyDeleteमुझे लगता है कि व्यक्तितव हमेशा लचीला होना चाहिए ताकि हर आचार विचार को अपना सके क्योंकि पेड़ की डाल अगर लचीली होगी तो हर तूफान को झेल लेगी और अगर कठोर होगी तो उतनी ही तेजी से टूट जायेगी।
ReplyDeleteसो उस लड़की का व्यवहार प्रशंसनीय और प्रेरित करने वाला है।
That girl managed social combination with old and modern sanskriti to live her personallities
ReplyDeleteThe girl has done correct. She balance both
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ReplyDeleteThat girl is intelligent.
ReplyDeleteGood adjustment
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