परिधान | इंदु शर्मा की पोस्ट | रविवार विचार |

bride-and-mother-in-law-relation 

शिखा अपने परिवार के  साथ विदेश यात्रा पर जा रही थी | मैं उस से मिलने उसके घर गई, शिखा बहुत उत्साहित और खुश थी |  उसने अपनी सारी शोपिंग मुझे दिखाई और कहा- " मैं हमेशा साड़ी ही पहनती हूँ लेकिन घूमने में आराम रहे इसलिए कुर्ती, टी-शर्ट, जीन्स खरीद कर लाई हूँ | 


पास में बैठी शिखा की सासु माँ उसे देख रही थी |  मैंने हँसते हुए कहा-"आंटी जी का तो इसमें कोई सामान नहीं है, आंटी आप भी तो जा रही हैं  घूमने, आपने अपने लिए सूट नहीं खरीदे ?

 इतना सुनते ही शिखा की सासु माँ तुनक कर बोली- "क्या साड़ी में विदेश यात्रा नहीं होती ? या फिर साड़ी पहन ने वालों को विदेश में घूमने नहीं दिया जाता ? विदेश  जाने के लिए क्या मैं अपना पहनावा बदल दूँ  ? "  

" हाँ आंटी जी सही कह रही हैं आप " ये कह कर मैंने बात को संभाला, और अपने घर लौट आई | 

कुछ दिन बाद मेरा हॉस्पिटल जाना हुआ, वहां मैंने शिखा को देखा , "अरे !शिखा कब लौटी , तुमने बताया नहीं कैसी रही विदेश यात्रा ? यहाँ  हॉस्पिटल में कैसे ?"  मैंने एक ही सांस में सब पूछ लिया | 

शिखा मायूस होकर कहने लगी, "कैसी यात्रा, हम जा ही नहीं पाए, सब कैंसिल हो गया | दिल्ली एयरपोर्ट पर एस्कलेटर से चढ़ते वक़्त सासु माँ का पैर साड़ी में उलझ गया और वो लड़खड़ा कर नीचे गिरती चली गई | वो तो पति की सूझबूझ के कारण उसी समय एस्कलेटर  बंद कर दिया गया नहीं तो अनर्थ हो जाता | बहुत चोटें आईं  हैं सासु माँ को, एक हफ्ते से एडमिट हैं | यह तो शुक्र है भगवान् का की ये हादसा अपने देश में ही हुआ, यदि विदेश में ऐसा हो जाता तो बहुत मुसीबत हो जाती "| 

मैं शिखा के साथ आंटी जी को देखने गई , बहुत दुखी थीं वे  कहने लगीं " जाने-अनजाने ही कितनी बड़ी मुसीबत आ गई, सबकी ख़ुशी को मैंने मिट्टी में मिला दिया, कितने उत्साहित थे सब | काश !उस दिन मैंने साड़ी की जगह सूट पहना होता तो शायद ये सब नहीं होता "| 

शिखा ने उन्हें सँभालते हुए कहा " माँ हमारे लिए आपसे बढ़ कर कुछ नहीं , हमें इस बात की ख़ुशी है की आप सही सलामत हैं, और विदेश घूमने की बात तो वो हम आपके बिल्कुल  ठीक होते ही चलेंगे " | 
सासु माँ मुस्कुराई और बोली " बेटा अब मेरे लिए भी सूट खरीद लाना, तुम्हारे साथ मैं भी जो तुम कहोगी पहन कर चलूंगी " | सबके होंठो पर हंसी आ गई " | 

विचारों के विरोध का सरल समाधान समन्वय है | 'लें'और 'दें' समझौतावादी नीति से विवादपूर्ण अनेकों गुत्थियां सुलझ जाती हैं | इसके निवारण के लिए दोनों पक्षों को विवेकपूर्ण कदम उठाने चाहिए | आपसी सामंजस्य ही परिवार में खुशियाँ बढ़ाता है | 

इस पोस्ट में व्यक्त की गई राय मेरे व्यक्तिगत विचार हैं | ज़रूरी नहीं की ये विचार आपके विचारों को प्रतिबिंबित करते  हों | 
आपके विचारों की प्रतीक्षा में 

इंदु शर्मा रविवार 
           

Comments

  1. बिल्कुल सही विचार है समय और परिस्थिति के अनुसार बदलाव लाना बहुत जरूरी है।तटस्थ होना इसी तरह खतरनाक साबित हो सकता है।

    ReplyDelete

Post a Comment